उत्तर सहित
Class 10th अर्थशास्त्र अध्याय - 1
अर्थव्यवस्था एवं इसके विकास का इतिहास
1 . अर्थव्यवस्था किसे कहते हैं ? इनके दो कार्य कौन-कौन से है ?
उत्तर- अर्थव्यवस्था से तात्पर्य वैसी क्रियाओं का सम्पादन, जिसमें आथिर्क उत्पादन निहित होता है। आर्थर लेविस ने अर्थव्यवस्था के संबंध में कहा कि व्यवस्था का संबंध किसी राष्ट्र के संपूर्ण व्यवहार से होता है जिसके आधार मानवीय आवश्यकताओं की संतूष्टि के लिए वह अपने संसाधनों का प्रयोग कर नाउन ने कहा कि ‘अर्थव्यवस्था आजीविका अर्जन की एक प्रणाला हा कहना त नहीं होगा कि अर्थव्यवस्था आर्थिक क्रियाओं का ऐसा संगठन है जिसके अंतगर्त लोग कार्य का मौका पाकर अपनी आजीविका का सम्पादन करत हा अर्थव्यवस्था क दो कार्य इस प्रकार हैं
(i)लोगों की आवश्यकताओं की संतूष्टि के लिए विभिन्न प्रकार की वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन करती है।
(ii) लोगों को रोजगार का अवसर प्रदान करती है। ,
2. पूँजीवादी अर्थव्यवस्था क्या है ? इसके अवगुणों की विवेचना कीजिए।
उत्तर- पूँजीवादी अर्थव्यवस्था का अर्थ- पूँजीवादी अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था है जिसमें उत्पादन के प्रमुख क्षेत्रों में निजी उद्यम पाया जाता है जो निजी लाभ के लिए काम करता है।
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के अवगुण-
(i) सम्पत्ति एवं आय की असमानताएँ – आय की असमानताओं के कारण देश की सम्पत्ति व पूँजी का केंद्रीयकरण कुछ ही व्यक्तियों के हाथों में रहता है और समाज में गरीब व अमीर के बीच खाई बढ़ जाती है।
(ii) सामाजिक कल्याण का अभाव – पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में स्वहित एवं स्वकल्याण की भावना सर्वोपरि होती है तथा सामाजिक कल्याण की भावना का पूर्ण रूप से अभाव होता है।
3. अंग्रेजों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को किस प्रकार प्रभावित किया ? वर्णन करें।
उत्तर- अंग्रेजों ने प्रारंभ से ही “फूट डालो और शासन करो” की नीति को अपनाकर भारत पर राज किया। हमारा देश कृषि प्रधान होने के बाद भी व्यापार, उद्योग एवं सांस्कृतिक विकास के लिए विश्व में जाना जाता था। अंग्रेजों ने हमारी अर्थव्यवस्था को निम्न प्रकार से प्रभावित किया-
(i)भारत का एक कच्चे माल उपलब्ध कराने वाले देश के रूप में आर्थिक शोषण।
(ii) यहाँ की जनसंख्या का गुलाम एवं मजदूरों के
रूप में शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक शोषण।
(iii) उनकी सारी नीतियाँ भारतीय अर्थव्यवस्था की जर्जरता और ब्रिटिश अर्थव्यवस्था के विकास के लिए बनाई गई।
(iv) यातायात के साधनों एवं मार्गों का भी इतना ही विकास किया गया जितने उनके सैनिक एवं व्यापारिक वस्तओं का आवागमन हो सके।
4.“सतत् विकास समय की आवश्यकता है।” इस कथन को स्पष्ट करे ?
उत्तर- विकास के क्रम में, प्राकृतिक संसाधन. जैसे-जल वायु जंगल, पेट्रोल, कोयला, गैस आदि का उपयोग होता है। अत्यधिक उपयोग से भावी पीढ़ी के प्रकृतिक संसाधनों की उपलब्धता घटती है। इसके कारण भावी पीढ़ी इससे वंचित हो सकती है। इनका अत्यधिक उपयोग पर्यावरण प्रदूषण की समस्या को बढ़ा देता इससे जीवन एवं भविष्य का विकास प्रभावित होता है। अत: वह सतत धारणीय आर्थिक विकास का अर्थ है कि विकास पर्यावरण को बिना नुकसान पहँचाए हो और वर्तमान विकास की प्रक्रिया भविष्य की पीढ़ियों की आवश्यकता की अवहेलना न करें।
5. भारत में बुनियादी सुविधाएँ या आधारभूत ढाँचा का वर्णन करें ?
उत्तर- भारत में बुनियादी सुविधाएँ अथवा आधारभूत ढाँचा रीढ़ की हड्डी के समान है इसके बिना विकास की कल्पना नहीं की जा सकती है। बनियादी सविधाएँ या आधारभूत ढाँचा को दो भागों में बाँटा गया है जो निम्नलिखित हैं –
(i) आर्थिक आधारभुत संरचना- इसका संबंध प्रत्यक्ष रूप से आर्थिक विकास के क्षेत्रों से है। इसकेअन्तर्गत निम्नलिखित को सम्मिलित किया गया है।
(क) वित्त-बैंकिंग क्षेत्र, बीमा क्षेत्र आदि।
(ख) ऊर्जा-कोयला, विद्युत, गैस, पेट्रोलियम।
(ग) यातायात रेलवे, सड़क, वायुयान, जलयान।
(घ) संचार-डाक, तार, टेलीफोन, टेली संचार, मीडिया एवं अन्य।
(ii) गैर-आर्थिक आधारभुत संरचना- यह अप्रत्यक्ष रूप से मनुष्य की क्षमता एवं उत्पादन में वृद्धि कर आर्थिक विकास में सहायता प्रदान करता है। जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य एवं नागरिक सेवाएँ इत्यादि।
6. भारत के लिए नियोजन क्यों आवश्यक है?
उत्तर- भारत एक अर्द्धविकसित राष्ट्र है। यहाँ की कृषि पिछड़ी हुई अवस्था में है, देश में पूँजी का अभाव है। उत्पादन व्यवस्था असंतुलित है तथा नागरिकों का जीवन-स्तर निम्न है। भारत आर्थिक दूष्टिकोण से एक निर्धन देश है और इसकी निर्धनता सभी प्रकार के विकास कार्यों में बाधक सिद्ध होती है। पूँजी के अभाव में विनियोग तथा विकास की दर भी बहुत कम है। अतएव, अर्थव्यवस्था के तीव्र विकास तथा बेरोजगारी, निर्धनता और देश में व्याप्त आय एवं धन के वितरण की विषमताओं को समाप्त करने के लिए नियोजन आवश्यक है।
7. भारत में नीति आयोग के गठन एवं उद्देश्यों पर प्रकाश डालें।
उत्तर_निर्धारित सामाजिक एवं आर्थिक विकास के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए विकास योजना बनाई जाती है। अभी तक भारत में बारह पंचवर्षीय योजनाओं को पूरा किया जा चुका है। भारत में नीति आयोग पाँच साल के लिए आर्थिक विकास की योजना बनाता है। भारत में योजना आयोग का गठन15 मार्च, 1950 को किया गया। इसके पदेन अध्यक्ष देश के प्रधानमंत्री होते हैं, योजना आयोग के प्रथम अध्यक्ष जवाहरलाल नेहरू थे।
योजना आयोग के शब्दों में, “आर्थिक नियोजन का अर्थ राष्ट्र की प्राथमिकताओं के अनुसार देश के संसाधनों का विभिन्न विकासात्मक क्रियाओं में प्रयोग करना है।” अर्थात् Economic planning means utilisation of country’sresources intodifferent development activites in accordance with national priorities.इस योजना आयोग का मुख्य उद्देश्य-आर्थिक विकास दर को बढ़ाना तथा कृषि एवं उद्योगों का आधुनिकीकरण करना तथा सामाजिक न्याय को बढ़ावा देना है।
8. बिहार के आर्थिक पिछड़ेपन के क्या कारण हैं ? बिहार के पिछडेपन को दूर करने के उपायों को लिखें।
उत्तर- बिहार में पिछड़ेपन के निम्नलिखित कारण हैं –
(i) तीव्र गति से बढ़ती जनसंख्या- बिहार में तीव्र गति से जनसंख्या में वृद्धि हो रही है। 2011 की जनगणना के अनुशार यहाँ की जनसंख्या 10,38,04,637 करोड़ हो गयी है। बढ़ती जनसंख्या विकास में बड़ी बाधा है।
(ii) धीमी कृषि का विकास-राज्य की अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है। यहाँ की कृषि व्यवस्था उन्नत नहीं है। जिससे कृषि पिछड़ा हुई है
(iii) उद्योग धंधों का अभाव- झारखण्ड के अलग होने से अधिकांश उघोग-अंधे झारखंड चले गये हैं. जो पिछडापन का मख्य कारण है।
(iv) बाढ एवं सूखा से क्षति- बिहार को बाढ़ एवं सूखा से प्रतिवर्ष काफी क्षति उठानी पडती हैं। प्रत्येक वर्ष सीतामढ़ी, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, मधुबनी, सहरसा आदि जिलों में बाढ़ तथा सूखा की स्थिति देखने को मिलती है।
(v) गरीबी- बिहार भारत के बीमारू राज्यों में से एक है। प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत से कम है। इस प्रकार यहाँ गरीबी का कुचक्र चलता रहता है
(vi) प्राकतिक साधनों के समुचित उपयोग का अभाव –बिहार है। उपलब्ध प्राकृतिक साधनों का समुचित उपयोग नहीं हो पा रहा है। झारखण्ड के अलग हो जाने के बाद यहाँ वन एवं खनिज की कमी हो गयी है। इसव पिछड़ापन का शिकार है।
(vii) कुशल प्रशासन का अभाव- बिहार में प्रशासन व्यवस्था की स्थति भी काफी खराब है।
पिछड़ापन दूर करने के उपाय- बिहार का आर्थिक पिछडापन आर्थिक,समाजिक एव राजनैतिक कारणों का संयुक्त परिणाम है तथा इसके संवृद्धि एवं कृषि एवं ग्राम-प्रधान राज्य है। अत: कृषि के विकास अत: कृषि के विकास और आधुनिकीकरण के बिना राज्य की संवद्धि संभव नहीं है। बिहार में कृषि वर्तमान स्थिति अत्यंत शोचनीय है। इसमें सुधार के लिए भूमि सुधार कार्यक्रमों का प्रभावपूर्ण कार्यान्वयन, सिंचाई-सुविधाओं का विस्तार, कृषि कार्यो के लिए पर्याप्त बिजली की आपूर्ति तथा बाढ़ और जल जमाव की समस्याओं का समाधान आवश्यक है। बिहार की भूमि उर्वर है और यहाँ कई प्रकार की व्यावसायिक फसलों का उत्पादन होता है। अतएव, इसके पिछड़ेपन को दूर करने के लिए राज्य में खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों को विकसित करना भी आवश्यक है।
9. बिहार के आर्थिक विकास की स्थिति की विवेचना कीजिए।
उत्तर- देश का एक प्रमुख राज्य होने पर भी बिहार आर्थिक दूष्टि से अत्यंत पिछड़ा हुआ है।
वस्तुतः, आर्थिक विकास के प्रायः सभी मापदंडों पर यह देश के अन्य सभी राज्यों से नीचे है। किसी राज्य के विकास का स्तर अंततः उसके राज्य घरेलू उत्पाद पर निर्भर करता है। देश के विकसित राज्यों की तुलना में बिहार का शुद्ध राज्य घरेलू उत्पाद बहत कम है। प्रतिव्यक्ति आय विकास का एक अन्य महत्त्वपूर्ण संकेतक है जो लोगों के जीवन-स्तर को प्रभावित करता है। जनसंख्या की सघनता अधिक होने के कारण बिहारवासियों की प्रतिव्यक्ति आय भी बहुत कम है। 2005-2006 में जहाँ हरियाणा और महाराष्ट्र की प्रतिव्यक्ति आय क्रमशः 38,832 तथा 37,021 रुपये थी वहाँ बिहार की प्रतिव्यक्ति आय मात्र 7,875 रुपये थी। खनिज संपदा औद्योगिक विकास का आधार है। विभाजन-पूर्व खनिज पदर्थो की दूष्टि से बिहार देश का सबसे धनी राज्य था। परंतु, विभाजन के पश्चात बिहार के अधिकांश खनिज नवनिर्मित राज्य झारखंड में चले गए हैं। इसका बिहार के औद्योगिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। पूँजी आदि के अभाव में उत्तर बिहार के चीनी, जूट, कागज आदि अधिकांश कृषि-आधारित उद्योग रुग्ण अवस्था में हैं अथवा बंद हो गए हैं। परिणामतः, राज्य की अधिकांश जनसंख्या अपने जीविकोपार्जन के लिए कृषि पर निर्भर है। परंतु, बिहार की कृषि अत्यंत पिछड़ी हुई अवस्था में है तथा इसकी उत्पादकता देश के प्रायः अन्य सभी राज्यों से कम है। बिहार की आर्थिक और सामाजिक दोनों ही संरचनाएँ बहुत कमजोर एवं निम्न स्तर की हैं। राज्य में बिजली की बहुत कमी है तथा यह कृषि एवं उद्योग दोनों के विकास में बाधक सिद्ध होती है।
10. आर्थिक विकास क्या है ? आर्थिक विकास एवं आर्थिक वृद्धि में अंतर बताइए।
उत्तर-आर्थिक विकास एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा दीर्घकाल में किसी अर्थव्यवस्था की वास्तविक राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है। आर्थिक विकास का मुख्य उद्देश्य अर्थव्यवस्था के समस्त क्षेत्रों में उत्पादकता का ऊँचा स्तर प्राप्त करना होता है। इसके लिए विकास प्रक्रिया को गतिशील करना पड़ता है। सामान्य तौर पर आर्थिक विकास एवं वृद्धि, दोनों में कोई अंतर नहीं माना जाता। दोनों शब्दों को एक-दूसरे के स्थान पर प्रयोग किया जाता है। अर्थशास्त्र के विशेषज्ञों ने इनमें निम्नलिखित अंतर पाया है। श्रीमती उर्सला हिक्स के अनुसार, “आर्थिक वृद्धि शब्द का प्रयोग आर्थिक दष्टि से विकसित उन्नत देशों के संबंध में किया जाता है जबकि विकास शब्द का प्रयोग विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के संदर्भ में किया जा सकता है।
आर्थिक विकास एवं आर्थिक वद्धि में अन्तर
(i)आर्थिक विकास विकसित देशों के विकास से संबंधित अवधारणा है जबकि आर्थिक वद्धि विकसित देशों के विकास से संबंधित अवधारणा है
(ii) आर्थिक विकास में आकस्मिक तथा रुक-रुककर परिवर्तन आते हैं जबकि आर्थिक वृद्धिएक क्रमिक, दीर्घकाल में स्थिर प्रक्रिया है
(iii) आर्थिक विकास उन्नती की प्रबल इच्छा एवं सृजनात्मक शक्तियों का प्रतिफल हैं जबकि आर्थिक वृद्धि एक परंपरागत तथा नियमित घटनाओं का परिणाम है।
(iv) आर्थिक वृद्धि के अन्तर्गत उत्पादकता में वृद्धि होती है जबकि आर्थिक विकास के अन्तर्गत उत्पादकता में वृद्धि के साथ-साथ तकनीकी और संस्थागत परिवर्तन होता है।
(v)आर्थिक विकास गत्यात्मक संतुलन की स्थिति को बताती है जबकि आर्थिक वद्धि स्थैतिक संतुलन की स्थिति होती है।
11. आर्थिक विकास का मापन कुछ सूचकांकों के माद्यम से करे |
उत्तर- आर्थिक विकास का मापन निम्न सूचकांकों के माध्यम से किया जा सकता है –
(i) राष्ट्रीय आय— राष्ट्रीय आय देश में होने वाली वृद्धि को मापने का महत्त्वपूर्ण मापदंड है। विश्व बैंक के अनुसार जिन देशों आय 4,53,000 रुपए प्रतिवर्ष या उससे अधिक थी उन्हें समृद्ध मन जाता था। वे देश जिनकी प्रतिवर्ष वार्षिक आय 37,000 रू या उससे कम थी उन्हें निम्न आय वर्ग में रखा गया था। भारत एक निम्न आय वाले देश में शामिल किया गया था। वर्ष 2004 के आँकडों के अनुसार भारत की प्रतिव्यक्ति आय मात्र 28,000 रु० थी।
(ii) मानव विकास सूचकांक- इसके अंतर्गत लोगों के शैक्षिक स्तर स्वास्थ्य-स्थिति एवं प्रतिव्यक्ति आय के आधार पर की जाती है। यह सूचकांक संयुक्त राष्ट्र की एक संस्था संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा प्रकाशित की जाती है। भारत का इस सूचकांक में 126वाँ रैंक है। इसके अतिरिक्त कुछ अन्य सूचकांकों का भी सहारा लिया जाता है जैसे मानव निर्धनता सूचकांक इत्यादि।
12. आर्थिक विकास के मुख्य क्षेत्रों का वर्णन करें।
उत्तर- आर्थिक विकास का शाब्दिक अर्थ है—देश के सभी प्रकार संसाधनों में विस्तार एवं वृद्धि करना, जिसके परिणामस्वरूप देश की सकल उत्पादकता और राष्ट्रीय आय में वृद्धि की जा सके। आर्थिक विकास के प्रमख क्षेत्रो में कृषि सर्वप्रमुख है,क्योंकि आज भी यह सबसे अधिक लोगों को रोजगार प्रदान करता है। सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि में भी इसका महत्त्वपूर्ण योगदान है। इसके बाद उद्योगों का स्थान है जिसमें कुशल मजदूरों को कार्य दिया जाता है। आर्थिक विकास में इस क्षेत्र का सर्वाधिक योगदान है क्योंकि उत्पादित वस्तुओं का निर्यात कर हमें विदेशी मुद्रा की प्राप्ति होती है। सेवा क्षेत्र के सभी क्षेत्रों में सर्वाधिक तीव्र विकास दर्ज की गई है परंतु इसमें सूचना-प्रौद्योगिकी (आई०टी०) सबसे ऊपर है। इसमें अति कुशल लोगों को ज्यादा रोजगार मिलता है। आज सेवा क्षेत्र भारत के आर्थिक विकास में सबसे अधिक योगदान दे रहा है।
13. आर्थिक विकास की माप किस प्रकार की जाती है ?
उत्तर- आर्थिक विकास आवश्यक रूप से परिवर्तन की प्रक्रिया है। इसके कारण दीर्घकाल में राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होती है। आर्थिक विकास की माप निम्न दो प्रकार से की जाती है –
(i) राष्ट्रीय आय- राष्ट्रीय आय को आर्थिक विकास का एक प्रमुख सूचक माना जाता है। किसी देश में एक वर्ष की अवधि में उत्पादित सभी वस्तुओं एवं सेवाओं के मौद्रिक मूल्य के योग को राष्ट्रीय आय कहा जाता है। जिस देश का राष्ट्रीय आय अधिक होता है, वह देश विकसित कहलाता है और जिस देश का राष्ट्रीय आय कम होता है वह देश अविकसित कहलाता है।
(ii) प्रतिव्यक्ति आय – आर्थिक विकास की माप करने के लिए प्रति व्यक्ति आय को सबसे उचित सूचक माना जाता है। राष्ट्रीय आय को देश की कल जनसंख्या से भाग देने पर जो भागफल प्राप्त होता है, वह प्रति व्यक्ति आय कहलाता है।
प्रतिव्यक्ति आय = राष्ट्रीय आय /कुल जनसंख्या
14. आर्थिक विकास एवं मौदिक विकास में क्या अंतर है? वर्णन करें |
उत्तर- आर्थिक विकास का अर्थ है देश के प्राकतिक एवं मानवीय साधनों के कुशल प्रयोग द्वारा राष्ट्रीय एवं प्रतिव्यक्ति वास्तविक आय में वृद्धि। प्रो० रोस्टोव अनुसार “आर्थिक विकास एक ओर श्रम-शक्ति में वृद्धि की दर तथा दूसरा जनसंख्या में वृद्धि के बीच का संबंध है।”
मौद्रिक विकास के अंतर्गत हम अर्थव्यवस्था के उस काल को शामिल करते हैं जिसके अंतर्गत मुद्रा के प्रादुर्भाव से आधुनिक मद्रा के प्रचलन तक के काल को शामिल करते हैं। इसकी शुरुआत मौद्रिक प्रणाली की शरुआत से होती है, जिसके बाद से अब तक इसके स्वरूप में अनेक परिवर्तन हुए हैं।
मुद्रा के आगमन से पूर्व वस्तु-विनिमय प्रणाली का प्रचलन था। इसके विभिन्न सिक्कों का आगमन हुआ। कागजी मुद्रा पहली बार चीन में आया और आधुनिक काल में प्लास्टिक मुद्रा जैसे ए० टी० एम० एवं क्रेडिट कार्ड का प्रचलन है|
15. अर्थव्यवस्था की संरचना से आप क्या समझते हैं? इन्हें कितने भागों में बाँटा गया है?
उत्तर- अर्थव्यवस्थाओं का व्यवसाय अथवा आर्थिक क्रियाओं के आधार पर अर्थव्यवस्था की संरचना की जाती है। अर्थव्यवस्था के अंतर्गत कई सारगर्भित तथ्य जैसे—उत्पादन, उपभोग, विनिमय आदि आते हैं। इनमें कई गतिविधियाँ संचालित होती हैं जिसमें बीमा, बैंक, व्यापार, कृषि, संचार आदि उल्लेखनीय हैं। इन क्रियाओं के आधार पर अर्थव्यवस्था को प्रमुख तीन भागों में विभाजित किया गया है।
(i). प्राथमिक क्षेत्र- प्राथमिक क्षेत्र में कृषि, उद्योग या व्यवसाय सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। इसलिए इस क्षेत्र को कृषि क्षेत्र भी कहा जाता है। आर्थिक विकास के प्रारंभिक काल में कृषि पर विशेष बल दिया गया, क्योंकि इसमें कम पूँजी की आवश्यकता होती थी। वर्तमान समय में भी कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था का सबसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है। यह क्षेत्र उद्योगों को कई मूलभूत सुविधाएँ प्रदान करता है। कृषि के अलावे पशुधन, वन, मत्स्यपालन आदि संबंधित तथ्य आते हैं।
(ii) द्वितीयक क्षेत्र- द्वितीयक क्षेत्र के अंतर्गत मुख्य रूप से खनिज एवं उद्योग जगत आते हैं। इसलिए इस क्षेत्र को औद्योगिक क्षेत्र भी कहा जाता है। वस्तुतः किसी देश के आर्थिक विकास में खनिज संसाधनों का विशेष महत्त्व होता है। इसे आधुनिक सभ्यता के विकास का आधार माना गया है। द्वितीयक क्षेत्रक का विकास करने में प्राथमिक क्षेत्र भी विकसित होने लगते हैं। इसके अंतर्गत विभिन्न प्रकार के निर्माण उद्योग, ऊर्जा उद्योग आदि आते हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था में प्राथमिक क्षेत्र और द्वितीयक क्षेत्र का कुल योगदान का लगभग आधा हिस्सा है।
(i) तृतीयक क्षेत्र- इस क्षेत्र में व्यापार, परिवहन, संचार व्यवस्था तथा सामाजिक सेवाओं का स्थान आता है। इस क्षेत्र के विकसित होने से प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्रों की उत्पादन कुशलता भी बढ़ जाती है। हाल के आँकड़ों के अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था का यह एक प्रमुख अंग बन गया है। जिसका योगदान 56% है, जो स्वतंत्रता-प्राप्ति के समय से दुगुना है।
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