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Economic Class 10th VVI Subjective question answer

 उत्तर सहित 

Class 10th विज्ञान अध्याय - 3 मुद्रा एवं साख 




1.  मुद्रा के कार्यों का वर्णन करें।

उत्तर- मुद्रा के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं-


(i) विनिमय का माध्यम- मुद्रा विनिमय का माध्यम है। मद्रा क्रय तथा विक्रय दोनों में ही मध्यस्थ का कार्य करती है।


(ii) मल्य का मापक- मुद्रा मूल्य का मापक हैं। किस वर होगा, यह मुद्रा द्वारा ही संभव है। मुद्रा के इस कार्य के कारण विनिमय करना आसान हो गया है।


(iii) विलंबित भुगतान का मान- आधुनिक युग में बहुत से आर्थिक कार्य उधार पर होता है और उसका भुगतान बाद में किया जाता है। मुद्रा ने उधार दन नया लेने के कार्य को काफी आसान बना दिया है।


(iv) मूल्य का संचय- मनुष्य वर्तमान की आवश्यकताओं को पूरा करते हुए भविष्य की आवश्यकताओं के लिए भी कछ बचाकर रखना चाहता है। मुद्रा की यह विशेषता है कि इसे जमा करके रखा जा सकता है। .


(v) क्रय शक्ति का हस्तांतरण- मद्रा के द्वारा कोई भी व्यक्ति किसी एक स्थान पर अपनी संपत्ति बेचकर किसी अन्य स्थान पर नयी सम्पत्ति खरीद सकता है।


(vi) क्रय शक्ति का हस्तांतरण- मद्रा साख के आधार का कार्य करती है। बिना मुद्रा के साख पत्र जैसे चेक, डापट. हण्डी इत्यादि प्रचलन में नहीं रह सकते।


इस प्रकार मुद्रा विभिन्न प्रकार के कार्यों को करते हैं।


2. मुद्रा के आर्थिक महत्त्व पर प्रकाश डालें।


उत्तर- वर्तमान युग मुद्रा का युग है। मद्रा आधनिक समय में आथिक जीवन का आधार केंद्र है। मुद्रा के आर्थिक महत्त्व को बताते हुए मार्शल का कथन है मुद्रा वह धूरी है जिसके चारों ओर समस्त अर्थविज्ञान चक्कर लगाता है।’ इस सर्भ में मुद्रा का आर्थिक महत्त्व एक विशेष अर्थ को संबोधित करता है।


(i) उपभोग के क्षेत्रों में मुद्रा का महत्त्व- उपभोग के क्षेत्रों में मुद्रा का एक अलग महत्त्व है। इसके कारण विभिन्न वस्तुओं की उपलब्धि संभव हो पाती है। इससे संचय आसान हो जाता है जो वस्तु विनिमय प्रणाली में संभव नहीं था। किसी वस्तु का उपभोग कर लेने के बाद उसका भुगतान करने में भी इसकीमहत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। इससे अधिकतम संतुष्टि की प्राप्ति होती रही है।


(ii) उत्पादन के क्षेत्रों में मुद्रा का महत्त्व- मुद्रा के प्रचलन से उत्पादन जगत में विशेष बदलाव आया। इसके कारण उत्पत्ति के साधनों को जुटाना और अधिक आसान हो गया। श्रम का विभाजन होने से उत्पादन प्रक्रिया को गति मिली। फलतः बड़े स्तर पर उत्पादन संभव हो सका।


(iii) विनिमय के क्षेत्रों में मुद्रा का महत्त्व- मुद्रा की सबसे बड़ी उपलब्धि वस्तु विनिमय प्रणाली की कठिनाइयों को दूर करने में रही है। इसके फलस्वरूप बैंक व साख संस्थाओं का विकास हआ। पँजी संचय की संभावना धीरे-धीरे बढ़ती चली गई। एक सबसे बड़ी उपलब्धि यह मिली की पूँजी सदैव अपनी गतिशील अवस्था में रही।


(iv) वितरण के क्षेत्रों में मुद्रा का महत्त्व- वितरण के क्षेत्रों में भी मुद्रा का अत्यधिक महत्त्व है। बड़े पैमाने के उत्पादन में लोग संयुक्त रूप से कार्य करते हैं। उन सभी को उनके कार्य का पुरस्कार मुद्रा के रूप में ही प्रदान किया जाता है।


(v) राजस्व के क्षेत्र में मुद्रा का महत्त्व- सरकार के आय-व्यय संबंधी सभी कार्य मुद्रा से ही होते हैं। वह जो भी कर लगाती है, मुद्रा में ही देना पड़ता है। वह अपना व्यय भी मुद्रा में ही करती है। मुद्रा के कारण सरकार अधिकतम सामाजिक लाभ के सिद्धांत का पालन करने में समर्थ है।


3. मुद्रा के विभिन्न दोषों का वर्णन करें।


उत्तर- मुद्रा के निम्न दोष हैं


(i) मुद्रा के मूल में अस्थिरता- मुद्रा का मूल्य स्थिर नहीं रहता, परिवर्तन होता रहता है। इस परिवर्तन के कारण ही मुद्रास्फीति और मुद्रा संकुचन की स्थिति उत्पन्न होती है।


(ii) इससे मुद्रा उधार लेने की आदत को प्रोत्साहन मिलता है। यह फिजूलखर्ची को भी बढ़ावा देता है।

(ii) इससे संपत्ति वितरण में भी असमानताएँ उत्पन्न होती हैं। धनी वर्ग को अधिक धन मिलता जाता है और निर्धन वर्ग की निर्धनता बढ़ती जाती है।

(iv) वर्ग संघर्ष का उदय- मुद्रा की शक्ति के बल पर समाज के कुछ लोग अधिक धनी होते चले जाते हैं और अन्य लोगों को आर्थिक गरीबी का सामना करना पडता है। इसके परिणामस्वरूप वर्ग संघर्ष उत्पन्न हो जाता है। इसलिए कहा जाता है कि “मुद्रा एक अच्छा सेवक किन्तु बरी स्वामिनी है।”


4. मुद्रा के विकास पर प्रकाश डालें।


उत्तर- वस्तु-विनियम प्रणाली की कठिनाइयों ने ही मद्रा को जन्म दिया। अतिप्राचीन काल से मुद्रा के रूप में अनेक वस्तुओं का प्रयोग किया जाता है। इसके इतिहास को हम निम्न वर्गों में बाँट सकते हैं।


(i) वस्तु विनिमय- इस समय वस्तु ही मुद्रा के रूप में कार्य करता था और एक वस्तु के बदले दूसरी वस्तु दी जाती थी।


(ii) वस्तु मुद्रा- इसके अंतर्गत चयनित वस्तुओं जैसे जानवरों की खाल, गाय, बकरी, अनाज इत्यादि का प्रयोग मुद्रा के रूप में होने लगा।

(iii) धात्विक मुद्रा- इसके अंतर्गत पीतल, ताँबे इत्यादि के सिक्कों का प्रचलन हुआ।


(iv) सिक्के – धातुओं से निर्मित ऐसी मुद्राओं का प्रचलन हुआ जो देश की सार्वभौम सरकार की मुहर से चालित होता था।


(v) कागजी मुद्रा- इसकी शरमात चीन में हुई थी। वर्तमान समय में विश्व में सर्वामिक प्रचलन इन्ही मुलाणों का है।


(vi) प्लास्टिक मुद्रा – ये माधुनिकतम पाणों के रूप में सामने आए हैं। ए टी एम सह डेबिट कार्ड, क्रबिट कार्ड इत्यादि इसके उदाहरण है।


(vii) साख मुद्रा- वर्तमान समय में इनका प्रचलन तेजी से बड़ा है इनमे चना तथा बैंक द्वापर के पगोग लि देखे जाते हैं।


5. मुदा से कौन-कौन लाभ ? वर्णन करें।


उत्तर- मुद्रा का हमारे भाभिक जीवन में बड़ा ही महत्वपूर्ण स्थान है। जैसा कि मार्शल ने कहा है, “मुना वह पुरी है जिसके चारों ओर अशा भापकर कारता है। गुदा निम्नलिखित महत्वपूर्ण कापों को सम्मान करती है।


(i) मुद्रा से उपभोक्ता को लाभ – मुद्रा के भविष्कार रामभाव लाभाआ है। प्रत्येक उपभोक्ता गुदा से अपनी प्रानुसार स्तनों को खरीप सकता सारा को त है। मुद्रा उपभोक्ताओं की माँग का आधार है। 


(ii) मुद्रा से उत्पादक को लाभ- उत्पादक को मुद्रा से अधिक लाभ हुआ है। मुद्रा की सहायता से उन्हें उत्पादन के सामानों की आवश्यक मात्रा जुटाने, कच्चे माल खरीदने तथा संचित रखने तथा समय समय पर जी की उधार प्राप्त करने में सहायता मिलती है।


(iii) मुद्रा और साख- मुद्रा के साख प्रणाली को संभव बनाया है। आधुनिक व्यवसाय का सारा ढाँचा, साख पर आधारित है। बैंक लोगों की छोटी-छोटी बचतों को इकट्ठा कर लेते हैं तथा उद्योगों को वह मुद्रा उधार दे देते हैं।


(iv) वरत विनिमय प्रणाली की कठिनाइयों का निराकरणा- गदा के आविष्कार के वस्तु विनिमय प्रणाली की सारी कठिनाइयों दूर हो गयी हैं। अब मुद्रा के कारण विनिमय आसान हो गया है।


(v) मुद्रा और पूँजी की सरलता- मुद्रा ने पूँजी की सरलता प्रदान की है, क्योंकि इसको प्रत्येक व्यक्ति स्वीकार कर लेता है। मुद्रा के रूप में पूँजी को किसी भी उपयोग में लगाया जा सकता है।


(vi) मुद्रा और पूँजी निर्माण- मुद्रा तरल संपत्ति है। इसे बैंक में जमाकर सुरक्षित रखा जा सकता है। इससे ब्याज प्राप्त किया जा सकता है। किसी उद्योग-धन्धों में पूँजी विनियोग करके पूँजी निर्माण में अधिक वृद्धि की जा सकती है।


(vii) मुद्रा और बड़े पैमाने के उद्योग- मुद्रा के होने से आज बड़े-बड़े उद्योग स्थापित हो सके हैं तथा बड़े पैमाने पर उत्पादन संभव हो सका है।


6. बचत क्या है? इसके विभिन्न प्रकारों की चर्चा करें।


उत्तर-आय तथा उपभोग का अंतर बचत कहलाता है। प्राप्त आय में से जितनी राशि खर्च करने के बाद शेष रहती है, बचत कहलाती है। अर्थात्


बचत = आमदनी (आय) – उपभोग (खर्च)


बचत दो प्रकार की होती हैं–


(i) नगद बचत तथा

(ii) वस्तु संचय।


कुल आय का कुछ अंश ऐसा भी होता है जो किसी प्रकार की वस्तु पर व्यय नहीं किया जाता है। इसे संचय गा नगद बचत कहते हैं।

जब बचत वस्तुओं के. संचय के रूप में हो तब उसे वस्तु संचय कहते हैं। जैसे भविष्य के लिए अनाज का संचय अथवा मकान बनाने में किया गया निवेश इत्यादि। क्राउथर के अनुसार “किसी व्यक्ति की बचत उसकी आय का वह भाग है जहाँ उपभोग की वस्तुओं पर व्यय नहीं किया जाता है।”


7. साख क्या है ? इसके किन्हीं तीन प्रमुख आधारों की विवेचना कीजिए।


उत्तर-साख का अर्थ होता है विश्वास अथवा भरोसा। विश्वास या भरोसा पर साख की मात्रा निर्भर करती है। इसी भिवास या साख के आधार पर व्यक्ति के ऋण लेने देने की मात्रा निर्भर करती है। साख के दो पक्ष होते हैं-ऋणदाता तथा ऋणी। किसी दिए गए समय में ऋणी रुपये, सेवाएँ या कोई वस्तु अपनी साख के आधार पर प्राप्त करता है, निर्धारित समय के बाद उतनो ही मुद्रा ब्याज सहित लौटाने का वादा करता है। साख के प्रमुख आधार निम्न है। –


(i) विश्वास- साख का मुख्य आधार विश्वास है। साख देने वाला या ऋणदाता उधार देने को तैयार होता है जब उसे विश्वास होता है कि ऋणी समय पर रुपया लौटा देगा।


(i) चरित्र- ऋणी का चरित्र भी उसकी साख का एक महत्त्वपूर्ण आधार होता है। यदि ऋणी चरित्रवान तथा ईमानदार हैं तो उसे ऋण मिलने में दिक्कत नहीं होती।


(iii) पूँजी एवं सम्पत्ति- ऋणदाता पूँजी तथा सम्पत्ति की जमानत के आधार पर ही ऋण देता है। अतः जिस व्यक्ति के पास जितनी ही अधिक पूंजी अथवा सम्पत्ति होती है, उसे उतना ही अधिक ऋण मिल सकता है।


8. किसी व्यक्ति की बचत करने की इच्छा किन बातों से प्रभावित होती है ?


उत्तर-किसी व्यक्ति की बचत उरएकी आय का वह भाग है जो उपभोग की वस्तुओं पर व्यय नहीं की जाती है। बचत को प्रभावित करने वाले प्रमुख तत्त्व निम्नलिखित हैं- 


(i) बचत करने की शक्ति-आय एवं व्यय का अनुपात ऐसा होना चाहिए कि आय जितनी अधिक होगी, उसके अनुपात में व्यय जितना कम होगा वहाँ बचत की शक्ति उतनी ही अधिक होगी। इसके अलावा सरकार की कर नीति द्वारा उत्पादन एवं आय में वृद्धि करके लोगों की बचत करने की शक्ति को बढ़ाया जा सकता है।


(ii) बचत करने की इच्छा –यदि किसी व्यक्ति के पास कम आय होने के बावजद यदि उस व्यक्ति में बचत करने की इच्छा होती है तो वह बचत कर पाता है। यह कई महों द्वारा प्रभावित होता है। जस-पारिवारिक प्रेम, ब्याज कमाने की इच्छा, सामाजिक प्रतिष्ठा. व्यक्ति का स्वभाव, पश का प्रभाव आदि पर बचत करने की इच्छा पर निर्भर करता है।


(iii) बचत करने की सुविधा- लोगों का बचत करने की सविधाओं भी बचत निर्भर करती है। यदि पँजी का विनियोग करने से लाभ अधिक हो तो बचत ज्यादा होगी, इसके अलावा वित्तीय स संस्थाओं की सुविधा मुद्रा के मूल्य में स्थायित्व जैसी सुविधा हो तो लोग बचत अधिक करेंगे।


9. पत्र मद्रा क्या है? भारत में इसे कौन जारी करता है विवेचना कीजिए।


उत्तर-पत्र मद्रा का आशय-पत्र मुद्रा विशेष किस्म के कागज पर छपा हआ एक प्रतिज्ञा-पत्र होता है, जिसमें निर्गमन-अधिकारी सरकार अथवा केंद्रीय बैंक वाहक को माँगने पर उसमें लिखित राशि देने का वचन देता है। यह प्रतिज्ञा-पत्र माँग पर देय होता है। पत्र मुद्रा प्रायः एक निश्चित विधान के अन्तर्गत निर्गमित की जाती है और इसके पीछे केंद्रीय बैंक द्वारा नियमानुसार स्वर्ण अथवा विदेशी प्रतिभूतियाँ । कोष में रखी जाती हैं।


विशेषताएँ-


(i) पत्र मुद्रा ही प्रमुख मुद्रा होती है तथा असीमित विधि ग्राह्य होती है।

(ii) पत्र मुद्रा का निर्गमन देश की सरकार अथवा केन्द्रीय बैंक द्वारा किया जाता है। पत्र मुद्रा विशेष प्रकार के कागज पर निकाली जाती है और उसकी छपाई भी ऐसे तकनीकी ढंग से की जाती है, ताकि उसकी नकल न की जा सके।


भारत में पत्र मद्रा का निर्गमन—भारत में पत्र मुद्रा का निर्गमन देश के केंद्रीय बैंक “रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया” द्वारा किया जाता है। दो रुपये से लेकर एक हजार रुपये के नोट पर रिजर्व बैंक के गवर्नर के हस्ताक्षर होते हैं। मुद्रा का निर्गमन सरकार द्वारा किया जाता है।


10. व्यावसायिक बैंकों के प्रमुख कार्यों की विवेचना करें।


उत्तर-सामान्य बैंकिंग का कार्य करनेवाले बैकों को व्यापारिक अथवा व्यवसायिक बैंक कहते हैं। इन बैंकों का मुख्य उद्देश्य व्यापारिक संस्थानों की अल्पकालीन वित्तीय आवश्यकताओं की पर्ति करना है। ये धन जमा करने, ऋण देने, चेकों से संग्रह या भुगतान तथा एजेंसी-संबंधी अनेक कार्य करते हैं। इनके प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं


(i) जमा स्वीकार करना- व्यापारिक बैंकों का एक महत्त्वपर्ण कार्य जनता से रकम जमा करना होता है। ये विभिन्न प्रकार की योजनाओं के तहत रकम लेते हैं। जैसे-चालू जमा योजना, बचत जमा योजना, सावधि जमा योजना तथा आवर्ती जमा योजना।


(ii) ऋण देना- बैंकों का दसरा मुख्य कार्य लोगों को ऋण देना है। बैंक के पास जो रुपया जमा के रूप में आता है। उसमें से एक निश्चित राशि नकद कोष में रखकर बाकी रुपया बैंक द्वारा दूसरे व्यक्तियों को उधार दे दिया जाता है। ये बैंक प्रायः उत्पादक कार्यों के लिए ऋण देते हैं तथा उचित जमानत की माँग करते हैं। ऋण की रकम प्रायः जमानत के मूल्य से कम होती है।


(ii) साख निर्माण में सहायक- वर्तमान समय में साख निर्माण व्यापारिक बैंकों का प्रमुख कार्य बन गया है। बैंक जनता से प्राथमिक जमाएँ (जमा राशि) प्राप्त करते हैं और साख गणक के आधार पर प्राप्त जमाओं से कई गुणा अधिक ऋण देते हैं सभी ऋण माँग जमाओं के रूप में होती है।


(iv) एजेन्ट के रूप में कार्य- व्यापारिक बैंक कई प्रकार की सुविधाएँ जनता को प्रदान करते हैं। ये बैंक अपने ग्राहकों की तरफ से चेक, किराया, ब्याज, लाभ आदि एकत्रित कर उनकी ओर से करों, बीमा आदि की किस्तों का भुगतान करते हैं। प्रतिभतियों की खरीद-बिक्री. धन का प्रेषण आदि इनके कार्यों के अंतर्गत आता है। केंद्रीय बैंक के निर्देशानसार विदेशी मद्रा का क्रय-विक्रय भी करते हैं।


(v) सामान्य उपयोगिता के कार्य- ये बैंक अपने ग्राहकों के हित में सामान्य. उपयोगिता के कार्यों को संपादित करते हैं। अपने ग्राहकों को लॉकर की सुविधा, यात्री चेक, ATM तथा क्रेडिट कार्ड की सुविधा आदि जैसे सामान्य कार्य संपादित करते हैं।


11. वस्तु-विनिमय प्रणाली की कठिनाइयों का वर्णन कीजिए।


उत्तर-वस्तु-विनिमय प्रणाली काफी समय तक प्रचलन में थी, लेकिन इसम अनेक कठिनाइयाँ थीं। इस प्रणाली की मख्य कठिनाइयाँ निम्नाकित है-


(i) आवश्यकताओं के दोहरे संयोग का अभाव- वस्तु-वा के अंतर्गत ऐसे दो व्यक्तियों में संपर्क होना आवश्यक है जिन का आवश्यकता-पूर्ति हेत वस्तएँ हों। लेकिन वास्तविक जीवन में इस प्रकार का संयोग बहुत कठिनाई से होता है। यदि विनिमय का क्षेत्र ह। यदि विनिमय का क्षेत्र अत्यंत सीमित है तो ऐसा दोहरा संयोग मिल सकता है और विनिमय में विशेष र सकता है और विनिमय में विशेष कठिनाई नहीं होगा। परंतु, विनिमय एवं व्यापार के विस्तार के साथ यह का विस्तार के साथ यह कठिनाई बढ़ती जाती है।


(ii) मूल्य के सामान्य मापदंड का अभाव- वस्तु-विनिमय प्रणाली में मूल्य को मापने का कोई सामान्य मापदंड नहीं होता। एक

मान्य मापदंड नहीं होता। एक सामान्य मापदंड के अभाव में दो वस्तुओं के बीच विनिमय का अनुपात निश्चित करना कठिन होता है। उदाहरण के लिए एक गाय के बदले कितना लए एक गाय के बदले कितना चावल मिलेगा, एक क्विंटल चावल के बदले कितना कपडा मिलेगा इत्यादि। इस प्रकार, पड़ा मिलेगा इत्यादि। इस प्रकार, मूल्य का एक सामान्य मापदंड नहीं होने कारण वस्तु-विनिमय में व्यापार की शर्त को निश्चित करने में मापदंड नहीं होने क कारण वस्त-विनिमय में व्यापार की शर्त को निश्चित करने में कठिनाई होती है।


(iii) विभाजन की कठिनाई- कुछ वस्तुएँ ऐसी हैं जिन्हें विभाजित नहीं किया जा सकता, क्योंकि विभाजित करने पर इनकी उपयोगिता समाप्त हो जाती है, जैसे एक गाय या घोडा। वस्त-विनिमय के अंतर्गत ऐसी वस्तुओं का विनिमय कम मूल्य को वस्तयों से संभव नहीं है। .


(iv) मल्य-संचय की कठिनाई- वस्तु-विनिमय प्रणाली के अंतर्गत मूल्य अथवा धन के संचय का कार्य अत्यंत कठिन है। वस्तुओं के रूप में धन का संग्रह करने के लिए बहत अधिक स्थान की आवश्यकता होगी। इसके अतिरिक्त वस्तुएँ नाशवान होती हैं। अतः उन्हें अधिक समय तक सुरक्षित भी नहीं रखा जा सकता।


(v) मूल्य के हस्तांतरण की कठिनाई- वस्तु-विनिमय प्रणाली में वस्तुओं को विनिमय के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने में कठिनाई थी। इस प्रणाली के अंतर्गत अचल संपत्ति के हस्तांतरण या खरीदने-बेचने का कार्य और भी कठिन था।


12. विनिमय क्या है ? इसके स्वरूपों का वर्णन करें।


उत्तर-आवश्यकता के अनुसार आपस में एक-दूसरे के द्वारा उत्पादित की हुई चीजों वस्तुओं के आदान-प्रदान से अपनी आवश्यकताओं को पूरा करना तथा प्राप्त आय से अपनी आवश्यकतानुसार उससे अन्य वस्तुएँ प्राप्त करना ही “विनिमय” है। आज विनिमय का.महत्त्व काफी बढ़ गया है।


विनिमय के स्वरूप (Form of Exchange)-विनिमय के दो रूप हैं। 


(i) वस्तु विनिमय प्रणाली तथा

(ii) मौद्रिक विनिमय प्रणाली


(i) वस्तु विनिमय प्रणाली- वस्तु विनिमय उस प्रणाली को कहा जाता है जिसमें एक वस्तु के बदले में दूसरी वस्तु का आदान-प्रदान होता है। दूसरे शब्दों में, “किसी एक वस्तु के बदले में दूसरी वस्तु के साथ बिना मुद्रा के प्रत्यक्ष रूप से लेन-देन वस्तु विनिमय प्रणाली कहलाता है। उदाहरण के लिए, गेहूँ से चावल बदलना, सब्जी से तेल बदलना, दूध से दही बदलना आदि। यह प्रणाली पुराने जमाने में प्रचलित थी।


(ii) मौद्रिक विनिमय प्रणाली (Monetary system)- वस्तु विनिमय की कठिनाई को दूर करने के लिए मुद्रा का आविष्कार किया गया। मुद्रा के आविष्कार से मनुष्य के व्यापारिक जीवन में सुविधापूर्वक आदान-प्रदान की स्थिति संभव हो सकी है। मुद्रा के आविष्कार से वस्तु विनिमय प्रणाली की सारी कठिनाइयों का आविष्कार समाधान हो गया। इस प्रकार इस संदर्भ में क्राउथर ने कहा कि “मनुष्य के सभी आविष्कारों में मुद्रा का आविष्कार एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। इस प्रणाली में मुद्रा विनिमय के माध्यम का कार्य करती है। इस तरह मुद्रा का विकास का इतिहास एक तरह से मानव-सभ्यता का इतिहास है।


13. डेबिट कार्ड और क्रेडिट कार्ड में क्या अंतर है ?


उत्तर- डेबिट कार्ड-आर्थिक विकास के इस दौर में बैंकिंग संस्थाओं के द्वारा प्लास्टिक के एक टुकड़े को भी मुद्रा के रूप में उपयोग किया जाने लगा है। प्लास्टिक मुद्रा का एक रूप ए०टी०एम० है। ए०टी०एम० से रुपया निकालने के लिए डेबिट कार्ड का प्रयोग किया जाता है।


क्रेडिट कार्ड- क्रेडिट कार्ड भी प्लास्टिक मुद्रा का एक रूप है। विश्व में पचलित क्रेडिट में टौप ए मास्टर कार्ड, अमेरिकन एक्सप्रेस आदि प्रसिद्ध है। केडिट कार्ड के अंतर्गत ग्राहक की वित्तीय स्थिति को देखते हुए बैंक उसकी साख की एक गशि निर्धारित कर देती है जिसके अंतर्गत वह अपने क्रेडिट कार्ड के माध्यम से निर्धारित धन राशि के अंदर वस्तुएँ और सेवाओं को खरीद सकता है। 


14. साख-पत्र क्या है ? कुछ प्रमुख साख-पत्रों पर प्रकाश डाले।


उत्तर- साख-पत्र वे साधन हैं जिनका प्रयोग साख मुद्रा के रूप है। ये कई प्रकार के होते हैं। कुछ प्रमुख साख-पत्र निम्नलिखित है –


(i) चेक- यह सर्वाधिक प्रचलित साख-पत्र है। यह एक लिखित जिसके अंतर्गत एक खाताधारी व्यक्ति अपने द्वारा जमा कि में से चेकधारक व्यक्ति को उतनी मुद्रा देने का आदेश जारी करता है ।


(ii) बैंक ड्राफ्ट- बैंक ड्राफ्ट वह पत्र है जो एक बैंक दूसरे बैंक अंकित व्यक्ति को उतने रुपये जो अंकित हैं देने का आदेश देता है। माध्यम से रुपये सुरक्षित एवं आसानी से एक जगह से दसरी पहुँच जाते हैं।


(ii) यात्री चेक- यात्रियों की सुविधा के लिए बैंकों द्वारा जारी विशेष का चेक जिसे निश्चित राशि जमा करके प्राप्त की जाती है।


(iv) प्रतिज्ञा पत्र- वैसे साख-पत्र जो ऋणी की माँग पर या एक नितिन अवधि के बाद उसमें अंकित रकम ब्याज सहित देने का वादा कि जाता है।

Economic Class 10th VVI Subjective question answer

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